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Friday, January 30, 2015

मन्जिल के रास्ता

जब सुरज ना थाकेला त हम कैसे थाक सकतानी ?
जब सुरज चलेला अकेला त हम काहे डरी ?

पुरुव से पछिम, सुरुसे अंत तक
जब चलेला उ अकेला , त  हम कैसे पिछे हात सकतानी ?

अकेले हम तय करब मन्जिल
चाहे केहू साथ रहे या ना रहे

सब कुछ आसान बा ई  दुनिया मे
समस्या त उ ह जेकर हल नइखे

उल्झन त अइबे करि रस्ते मे
खेल के देखा देब हम भी सिकन्दर हइ

हम न चाहम उदेके नसिब से
हम त उडम कबिलियत के दम से

आराम सुकुन से न मिलि मन्जिल
पत्थर फोर के निकाल देब पानी

छोत से छोत काम से करब सुरुवात
आगे बडा देम , वृक्ष भी कभी विज रहेला

बन के सीतारा जगमगा देब पुरा दुनिया मे
जइसे रहेला चाँद सितारण के बीच मे

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