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Friday, January 9, 2015

लालच के फल 


कव्नो गाउ मे एगो साधु रहलान।  ऊ  हरदम हरदम नया नया गाउ  सहरमे जाके तपस्या करेके सौकिन रहलान। एक दिन उ साधु एगो  आदमी से भेट कैलन , उ साधु कह्लन बेत ! हम सय रूपया  के दु सय रूपया कर सकतानी , मतलब दुगुना करेके शक्ति बा हमरा मे , तब ऊ  आदमी साधु के दश रुपयाके नोट  देहलन तब साधु कुछ  कैलन आ दश के बीश बाना  देहलन। तब फेन ऊ  आदमी पाच सय के नोट देहलन  त उ ओके एक हजार के नोट बानाके दे देहलन। तब उ आदमी के लगल साधु बाबा त बहुत चमत्कारी बाड्न।  साधु कहलन  बेता ! तु और कुछ  दुगुना करेके चाह तार  त् करल , न त हम जातानी  कुटिया मे।  इ बाट सुनके ऊ  आदमी अपन मेहरारू के पुरा गहना जेवर सोना चाँदी सब बतोर  के लाइल  आ कहलन  महाराज जी एके दुगुना बना  दी।  तब साधु कह्लन अच्छा  भाई  ! एगो  कोठरी मे हमे बैठा द आ ढोका  बन्द कर द , हम तपस्या करके एके दुगुना बनादेम। तब साधु के गहना सहित कोठरी मे बैठा के ढोका बन्द कर देहल गइल।  सबेरे उ आदमी कोठरी खोल्लन त  ऊ  साधु गायब रहे। पुरा गहना सब लेके झ्याल माहे  रत मे ही भाग गइल रहलन।

ई  कहानी त बा साधारण लेकिन बहुत प्रेरक बा "जे असंतुस्ट रहेला ओकर नाश जल्दी होकेला। " सचमे  लालच बहुत बड्का बलाये ह। 

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