लालच के फल
कव्नो गाउ मे एगो साधु रहलान। ऊ हरदम हरदम नया नया गाउ सहरमे जाके तपस्या करेके सौकिन रहलान। एक दिन उ साधु एगो आदमी से भेट कैलन , उ साधु कह्लन बेत ! हम सय रूपया के दु सय रूपया कर सकतानी , मतलब दुगुना करेके शक्ति बा हमरा मे , तब ऊ आदमी साधु के दश रुपयाके नोट देहलन तब साधु कुछ कैलन आ दश के बीश बाना देहलन। तब फेन ऊ आदमी पाच सय के नोट देहलन त उ ओके एक हजार के नोट बानाके दे देहलन। तब उ आदमी के लगल साधु बाबा त बहुत चमत्कारी बाड्न। साधु कहलन बेता ! तु और कुछ दुगुना करेके चाह तार त् करल , न त हम जातानी कुटिया मे। इ बाट सुनके ऊ आदमी अपन मेहरारू के पुरा गहना जेवर सोना चाँदी सब बतोर के लाइल आ कहलन महाराज जी एके दुगुना बना दी। तब साधु कह्लन अच्छा भाई ! एगो कोठरी मे हमे बैठा द आ ढोका बन्द कर द , हम तपस्या करके एके दुगुना बनादेम। तब साधु के गहना सहित कोठरी मे बैठा के ढोका बन्द कर देहल गइल। सबेरे उ आदमी कोठरी खोल्लन त ऊ साधु गायब रहे। पुरा गहना सब लेके झ्याल माहे रत मे ही भाग गइल रहलन।
ई कहानी त बा साधारण लेकिन बहुत प्रेरक बा "जे असंतुस्ट रहेला ओकर नाश जल्दी होकेला। " सचमे लालच बहुत बड्का बलाये ह।